Description of the Book:
"हमारे हिस्से का आसमाँ" कविता संग्रह में संकलित कविताएँ केवल शब्द नहीं, बल्कि उन अनुभवों का सृजनात्मक प्रतिबिंब हैं जो देवदार और चीड़ के वनों की गंध, नदियों के स्वर, भूस्खलन, मानव-वन्यजीव संघर्ष और वनाग्नि से जूझते उत्तराखंड के पहाड़ों की पीड़ा से उपजे हैं। यहीं उनकी लेखनी "करने" और "होने" के मध्य सेतु बनती है—जहाँ एक ओर वन-सेवक का कर्तव्य है, तो दूसरी ओर कवि का वह सपना जो पत्तियों की खनखनाहट और नदियों की लहरों में ईश्वर को तलाशता है। उनके लिए प्रकृति कोई विषय नहीं, बल्कि सह-रचयिता है। जिस तरह उन्होंने प्रकृति को सहेजा, उसी तरह उनकी कविताएँ शब्दों को साधती हैं—बिना भाषा की हदों में बाँधे। डा. पाण्डेय की रचनाधर्मिता सिर्फ़ साहित्य नहीं, बल्कि एक ऐसी दृष्टि है जो मानवीय संघर्ष और प्रकृति के संगीत को एक साथ बाँधती है।वे मानते हैं कि "कविता और भारतीय वन सेवा दोनों ही धैर्य की मिट्टी में उगते हैं—एक में बीज प्रस्फुटित होता है, तो दूसरे में शब्द।"
हमारे हिस्से का आसमाँ
Author's Name: डा. धीरज पाण्डेय
About the Author: डा धीरज पाण्डेय, भारतीय वन सेवा के उत्तराखंड संवर्ग के वरिष्ठ अधिकारी हैं, और वर्तमान में मुख्य वन संरक्षक के पद पर कार्यरत हैं।इन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर तथा केम्ब्रिज विश्वविद्यालय (यू.के) से ग्रहण की। पिछले दो दशकों से उत्तराखंड की देवभूमि में वन एवं वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरणीय संवाद के क्षेत्र में सक्रिय डा धीरज पाण्डेय कविता को "मिट्टी और आकाश के बीच की वह सीढ़ी" मानते हैं, जो उनके व्यक्तित्व के दो पहलुओं—एक कर्मयोगी वन-सेवक और एक संवेदनशील रचनाकार—को जोड़ती है।शब्द-साधक डॉ. धीरज पाण्डेय का काव्य-संसार उनके द्वारा गत दो दशकों की राजकीय सेवा के दौरान प्राप्त अनुभवों तथा प्रकृति, मनुष्य और अस्तित्व के बीच के नाज़ुक ताने-बाने को समेटता है। इससे पूर्व इनका एक काव्य-संकलन "शिनाख़्त", वर्ष 2006 में प्रकाशित हो चुका है। Book ISBN: 9789369530472