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Description of the Book:

 

काश ऐसा होता कि दुनिया वैसी ही होती जैसा हम उसे देखते हैं, या हम इसे वैसा ही देख पाते जैसी वो है। २० के दशक के अंतिम साल बहुत अजीब होते हैं जब हम ख़ुद को तो समझ लेते हैं पर इस दुनिया में अपनी जगह अब भी टटोल रहे होते हैं। दिमाग से चलने वाले लोगों की भीड़ में अक्सर हम दिल कि सुनने वाले लोग अपने आप को भटका पाते हैं। पर हम गलत नहीं हैं। हमें बस यये समझने की ज़रूरत है कि अपनी शर्तों पे जीना मुश्किल है पर इससे कम हमें मंज़ूर ही नहीं है। तो हमें अपने आप को इन मुश्किलों के लिए तैयार करना होगा। कोई साथ दे ना दे अंत में हमें हमारा साथ ज़रूर रहेगा। कभी कभी ये हमें कम लग सकता है पर हमें ख़ुद पे अपने भरोसे को कम नहीं होने देना चाहिए। जीवन में इतनी दूर तक आना आसान नहीं था और आगे भी अंत में सब ठीक ही होगा।
मेरी इस किताब का उद्देश्य इस आत्मविश्वास को और दृढ़ करने का एक प्रयास है। आशा करती हूं कि इसे पढ़ने वाले हर व्यक्ति को यह पसंद आए और इससे जीवन जीने का थोड़ा और साहस मिले।

मेरे लिए मैं काफ़ी हूं

SKU: 9789360948078
₹110.00Price
  • Author's Name: Sonalika Sahoo

    About the Author: I'm 27 year old doctor, currently pursuing MD pathology at Dr. RML hospital, New Delhi. I'm an introvert and animal lover. I like expressing my feelings through poems since childhood although very few people who know about this. This book is an attempt of self love and self care with the hope that maybe few more people will be able to understand me and will be able to me.
    Book ISBN: 9789360948078
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