ज़िन्दगी से तो रूबरू बहरहाल हम हो ही जाते हैं मगर ज़िन्दगी के सवालों के
साथ संवाद हमारा कभी-कभी ही हो पाता है और यह किताब वो ‘कभी’ है!
‘सत्य की कलम’ लेखक (पीयूष गुप्ता) द्वारा लिखी गयी है जिन्होंने
इंजीनियरिंग की पढाई की है और साथ ही साथ ‘संगीत’ और ‘लिखने’ का भी
एक छोटा सा शौक रखते हैं! यह पुस्तक लेखक अपने ही जीवन से जुडी कुछ
उन बातों को रखने का यहाँ प्रयास करते हैं जो हो सकता है कि पहले से ही
किसी न किसी द्वारा रखी जा चुकी हों परन्तु सत्य का पालन अवश्य करती हैं
साथ ही साथ जो वास्तविकता में भले ही कहीं न कहीं पर मुमकिन न हों
परन्तु हैं तो आखिर सत्य ही! लेखक प्रतिदिन एक ऐसे ही ‘विषय’ को तलाशने
की कोशिश करते हैं जो भले ही फिर ‘सजीव’ हो या ‘निर्जीव’ परन्तु सभी के
लिए समान दृष्टि अवश्य रखता हो! जीवन की इस तेज़ रफ़्तार में हम सभी
कुछ ऐसे विषयों पर सोचना बंद कर देते हैं जिनका हमारे जीवन में एक एहम
हिस्सा वास करता है, उदाहरण को जैसे:
१) किस लक्ष्य की दौड़ में है यह जीवन हमारा?
२) कुछ नया करने का प्रयास करना!
३) अपने ही द्वारा की हुई उन गलतियों को दिल से स्वीकारना!
४) ज़्यादा कमाने की होड़ में अपने ही माता-पिता को अकेला छोड़ चले
जाना..!
‘सत्य की कलम’ अपने हर पृष्ठ पर दिल दहलाने और दिमाग खोलने वाले
प्रश्न, अनुभव, और आलोचनात्मक टिपपणियां छुपाए हुए है जो चल रहे जीवन
पर अल्पविराम लगाने के लिए प्रोत्साहित करती है और ख़ुद से यह सवाल
करने को कहती है कि क्या इस ज़िन्दगी को और बेहतर तरीके से जिया जा
सकता है? थोड़ा कम दिखावटी, थोड़ा भावात्मक, ख़ुद की जरूरतों से दूर प्रकृति
की सहुलतों के वास्ते!
top of page
₹190.00Price
bottom of page