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21 कविताओं का संग्रह

विपथगा: सर्जना का स्वर

SKU: 9783766981103
₹50.00Price
  • Author Name: Pratap Rajat
    About the Author: परिचय! मुझे नहीं पता वो कौनसे शब्द होंगे जिनमें अपने अस्तित्व को मैं बांध सकूँगा। क्या लिखूं? क्या है मेरा परिचय? मेरे इह की अभिव्यक्ति! मेरे अस्तित्व का सार! क्या है? नहीं जानता। और इस न जान पाने की कसक ही का परिणाम है मेरी कविता। इसके सिवा और भी बहुत कुछ है, पर अपने मूलतम स्तरों पर बस यही है: जंजीरों में बंधे होने की बेचैनी। अनभिज्ञता से निरंतर संघर्ष! क्यों नहीं मैं इसे अपराजेय तथा अंतिम मान लेता? और यदि मान भी लूँ तो उस स्वीकृति में मेरी पराजय की कड़वाहट का क्या? जिस दिन मान सकूँगा, और खिलखिला सकूँगा, संत हो जाऊंगा। अभी जब तक ज़ोर है, अभिमान है, कवि रहने दो। जीवन के सिर्फ 18 वसंत देखे हैं मैंने। किन्तु अस्तित्व अभी से बोझ है! प्रश्न हैं। जिज्ञासाएं हैं। जंजीरें हैं। और केवल व्यक्ति निष्ठ कदापि नहीं। यह बोझ, यह कसक, यह पीड़ा जो मेरी कविता में अभिव्यक्ति पाती है मेरी पीढ़ी को मिली विरासत है। मेरी कविता समष्टि का क्रंदन है। एक आह है जो कोटि कोटि मुखों से प्रतिपल निकलती है। चिर रुदन! संसृति का सार! काव्य...
    Book ISBN: 9783766981103

     

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