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Description of the Book:

 

सूफ़ी कहते है : ज़ाहिर वो है जो आपके आस्था के बाहरी आयाम को संदर्भित करता है और बातीन आपके आंतरिक, आध्यात्मिक आयाम को संदर्भित करता है

पाकीज़ा रिज़वी लिखती है
“ मेरे ज़ाहिर से है बेख़बर, मेरे बातीन का हमराज़ है, मेरी बेरुख़ी का गिला नहीं, उसे मेरी वफ़ा पे नाज़ है”

मैं मजबूर हूँ सोचने पर..
“ मेरे बातीन से हूँ बेख़बर मैं, अपने ज़ाहिर से नाराज़
बेरुख़ी से है वफ़ा अब, इन गिलाओं का है साथ!”

इस कविता संग्रह में वो लफ़्ज़ दर्ज है जो हमनें कभी अपने आप से तन्हाई में कहे, कभी किसी से कहना चाहा पर कहा नहीं, और वो भी जिन्हें ना महसूस किया ना कहा!

अपने भीतर और बाहर के दुनिया की झूँझ सिर्फ़ हम जानते है. व्यक्त और अव्यक्त का फ़ासला हम तय करते हैं. स्पष्ट और अस्पष्ट के दायरे को हम जीते हैं!

‘ज़ाहिर- बातीन’ एक प्रयास है इन्ही भावनाओं को अल्फ़ाज़ में पिरोने का. आप और हम जुदा नहीं, शायद इन पंक्तियों में आपको अपने अनकहें अल्फ़ाज़ मिले. अगर ऐसा हों, तो अपने आप से जरूर इज़हार करना!

ज़ाहिर - बातीन

SKU: 9789363315624
₹110.00Price
  • Author's Name: Sapana Bhavsar

    About the Author: सपना एक भावुक लेखिका, एनर्जी हीलर, उत्साही पाठक, शौकिया फोटोग्राफर, पशु प्रेमी, खाने की शौकीन, थिएटर पारखी और यात्रा उत्साही हैं। वह एक मानव संसाधन (हुमन रिर्सोसेस) पेशेवर हैं और पिछले 18 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। उनकी बिल्लियाँ, स्टार्क और शरलॉक, उनकी आँखों की चमक हैं। वह अपने पति आशीष के साथ मुंबई में रहती हैं और परिवार और दोस्तों से बेहद प्रभावी हैं
    Book ISBN: 9789363315624

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