Description of the Book:
एक डूबता सूरज, एक ऐसी कविता की किताब है, जिसमे किसी इन्सान के जीवनमे बुरे वक्त में आती सम्वेदना का संग्रह है। जब किसी इंसान के जीवन का सूरज अस्त होने वाला होता है, तब वह इंसान के मनमे क्या क्या गड़मथल चल रही होती है, कैसी कैसी भावनाओं से वह गुजर रहा होता है, क्यों वह सब कुछ हारा हुआ महसूस करता है उसका वर्णन किया गया है। क्यो कोई व्यक्ति अपना अमूल्य जीवन छोड़ देना चाहता है।
जब आप भी किसी ऐसे व्यक्ति से मिले तो उसे समझने की कोशिश करे, ना कि कोई फालतू की सलाह दे, जैसे कि:
अरे, इसमे क्या है,
ये तो सब के साथ होता है,
इसमे से तो मैं भी गुज़र चुका हूं,
लूज़र हो क्या,
मन का वहम है,
मन से निकाल दो।
आप सिर्फ उसके कंधे पर हाथ रख के दिल से उसकी बात सुनेंगे तो वो भी अपना मन हल्का महसूस कर सकेगा। बस, वो तो यही चाहता है कि ऊसे कोई सुने।
याद रखे कि,
लोग कौन सी परिस्थितियों से गुज़र रहे होते है, उसका आपको कोई अंदाजा भी नही है, कभी कभी बहोत मुस्कुराहट वाली व्यक्ति ही सबसे ज्यादा संघर्षमयी जिंदगी जी रहा होता है,
इसलिए दयावान बनो।
क्या पता, आप एक जिंदगी बचा पाओ।
एक डूबता सूरज
Author Name: Dr. Prashant C Jariwala About the Author: डॉ. प्रशांत चंद्रवदन जरीवाला एमबीबीएस, एमडीसाइकियाट्रि ""द डार्क साइकियाट्रिस्ट"" । साइकियाट्रिस्ट । एमेच्योर एस्ट्रोनॉमर । पैशनेट साइकलिस्ट । रनर । राइटर । आर्टिस्ट । फोटोग्राफर । बर्डर । गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज और न्यू सिविल हॉस्पिटल सूरत से एमबीबीएस करने के बाद डॉ. प्रशांत जरीवाला ने अपने साइकियाट्रि के इंटरेस्ट के लिए भारत के कई हिस्सो में ट्रावेलिंग किया। यही से उनकी लिखने की शुरुआत हुई थी। भाग्यवश, उनको साइकियाट्रि में पोस्ट ग्रेजुएशन अपने ही होमटाउन और अपनी ही मातृ संस्थान गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज और न्यू सिविल हॉस्पिटल सूरत में मिल गया। साइकियाट्रि की फिल्डमे गहरा ज्ञान होने के साथ साथ डॉ. जरीवाला एक बहुरूपी प्रतिभा है, जिनको एस्ट्रोनॉमी, सायकलिंग, रनिंग, फोटोग्राफी, बर्डिंग, मुद्रा संग्रह, लेखन और कला में काफी रस है। उन्होंने स्कूल कोलेज, गवर्नमेंट और बिन सरकारी संस्थान, कॉरपोरेट ऑफिसिस और बहोत सी जगहों पर सेमिनार और वर्कशॉप भी किये है। उन्हें कॉन्टेक्ट करने का आसन तरीका उनका फेसबुक और मेसेंजर पेज @DrPrashant C Jariwala है। आपन उन तक उनके ईमेल आईडी पे भी लिख शकते हो dr.prashant.jariwala@gmail.com. Book ISBN: 9783681189240